Kavita Jha

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छंद गीत #हिंदी दिवस प्रतियोगिता लेखनी -18-Sep-2022


आशा का दीप (छंद मुक्त कविता)

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मन में आशा का दीप
जलाए रहती हूं
जो मिल न सका
जीवन में मुझको
उसका अफसोस
अब नहीं करती हूं
ऐसा जो किया होता
तो
वैसा तब होता
सोच सोच कर
समय होता सिर्फ बर्बाद
तो
सुन ले मेरी बात सखी
अब हमने है ठान रखी
अफसोस नहीं है करना
जितना जो भी मिले
उसमें ही है खुश रहना
यह तो है
बड़े बुजुर्गो का भी कहना
समय तो है
अनमोल गहना
आशा का दीप न बुझने देना
कुछ अच्छा
इंतजार कर रहा है हमारा
यही सोच आगे बढ़ते जाना है
पीछे मुड़कर अब नहीं देखना है।
***
कविता झा'काव्या कवि'
सर्वाधिकार सुरक्षित ©®

# लेखनी हिंदी दिवस प्रतियोगिता 

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7 Comments

बहुत ही सुंदर और संदेश देती हुई रचना,,, बुजुर्गों होगा जी बुजुर्गो नहीं

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Kavita Jha

25-Sep-2022 07:10 PM

आभार आदरणीय 🙏 मेरे टैब का सीसा क्रैक है तो क ई बार इस तरह की त्रुटि दिखाई ही नहीं देती जब लिखने के बाद पुनः पढ़ती हूँ आपने बहुत अच्छा मार्गदर्शन किया मेरी सभी कविताओं में 🙏

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Pratikhya Priyadarshini

22-Sep-2022 12:13 PM

Achha likha hai 💐

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Swati chourasia

20-Sep-2022 07:13 PM

बहुत खूब

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